
- अभिमनोज
दिल्ली हाईकोर्ट ने सेना के एक अफसर को नौकरी से निकालने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा है कि- सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है, यहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है, लेकिन किसी भी सैनिक को अपने धर्म को सेना के नियमों से ऊपर रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती.
खबरों की मानें तो…. यह मामला सैमुअल कमलेसन नाम के एक अफसर से जुड़ा है, जिन्हें 2017 में नौकरी से इसलिए निकाल दिया गया था कि उन्होंने रेजिमेंट के धार्मिक परेड में शामिल होने से मना कर दिया था.
कमलेसन का कहना था कि वह ईसाई धर्म को मानते हैं, इसलिए वह परेड में शामिल नहीं हो सकते.
इस मामले में कमलेसन ने अपनी बर्खास्तगी को अदालत में चुनौती दी जहां उन्होंने कहा कि- उन्हें बिना पेंशन और ग्रेच्युटी के नौकरी से निकाला गया है, यही नहीं, उन्होंने नौकरी पर वापस रखने की भी मांग की थी.
खबरों पर भरोसा करें तो…. जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि- हमारे सशस्त्र बलों में सभी धर्मों, जातियों, पंथों, क्षेत्रों और विश्वासों के कर्मी शामिल हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य देश को बाहरी आक्रमणों से बचाना है, वे अपने धर्म, जाति या क्षेत्र से विभाजित होने के बजाय अपनी वर्दी से एकजुट हैं.
अदालत का कहना था कि- कमलेसन का व्यवहार सेना के धर्मनिरपेक्ष नियमों के खिलाफ था.
उल्लेखनीय है कि….. कमलेसन मार्च 2017 में सेना में लेफ्टिनेंट के तौर पर शामिल हुए थे, उन्हें थर्ड कैवेलरी रेजिमेंट में तैनात किया गया था, जिसमें सिख, जाट और राजपूत सैनिक हैं, कमलेसन को स्क्वाड्रन बी का ट्रूप लीडर बनाया गया था, जिसमें सिख सैनिक हैं.
अदालत का कहना है कि- कमलेसन को कई बार समझाया गया था, लेकिन उन्होंने बात नहीं मानी, इसके बाद ही उन्हें नौकरी से निकालने का फैसला लिया गया, यह फैसला सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद लिया गया था, क्योंकि सेना में अनुशासन बहुत जरूरी है, यदि अनुशासन नहीं होगा, तो सेना ठीक से काम नहीं कर पाएगी, सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है, यहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है, लेकिन किसी भी सैनिक को अपने धर्म को सेना के नियमों से ऊपर रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती है!